तुम फिर उसी तरह हर बार
आ जाना यूँ ही मुस्कुराती
मेरे तन मन को फिर से
मोहक मुस्कान से लुभाती
मेरे संग सानिध्य में चल
हर पल उसी भांति हर्षाती
तुम्हारी उन्हीं अदाओं में
नित्य इठलाती बलखाती
मेरे अनित्य को नित्य में
परिवर्तित सा भी कर देती
तुम्हारे संसर्ग में बस मेरी भी
हर साँस साँस भी महकाती
मुझसे मेरे निज का एक नया
सहज परिचय भी करवाती
तुम फिर आ जाना हर बार
नई नई खुशियाँ बिखराती
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