उम्र को नहीं अन्दाज़ कभी उम्र का
ज़िस्म को है नहीं अन्दाज़ रूह का
अब नहीं बन्धन रहा हर बात का
हाथ ना अब रहा और कोई हाथ का
दिन को नहीं ख़बर तो क्या रात का
रात अंधेरी तो जाता क्या रात का
हौसलों में है छुपा डर का भी पता
है कहाँ तेरी खुदाई ऐ खुदा तू ही बता
बन्दों को नहीं बन्दगी का कुछ पता
भीड़ में चलते हैं पर ख़ुदी है लापता
खुदा ही जाने मतलब सब बात का
No comments:
Post a Comment