Thursday, May 17, 2012

लापता

उम्र को नहीं अन्दाज़ कभी उम्र का ज़िस्म को है नहीं अन्दाज़ रूह का अब नहीं बन्धन रहा हर बात का हाथ ना अब रहा और कोई हाथ का दिन को नहीं ख़बर तो क्या रात का रात अंधेरी तो जाता क्या रात का हौसलों में है छुपा डर का भी पता है कहाँ तेरी खुदाई ऐ खुदा तू ही बता बन्दों को नहीं बन्दगी का कुछ पता भीड़ में चलते हैं पर ख़ुदी है लापता खुदा ही जाने मतलब सब बात का

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