दुविधा है मेरी जाऊं मैं किस राह
चलूँ लीक पर या चुनूँ नई कोई राह
पथ की बाधाएँ तो होंगी दोनों ही और
मैं क्यों न करूँ किसी पथ का रुख
कुछ तो पा ही लूँगा मैं एक राह
क्या ध्वनित क्या चित्रित से लेना
मुझको तो बस चुन लेनी कोई राह
बढ़ता जाऊं किसी गीत की लय सा
साज न हो बस सुर भी होंगे काफी
कुछ तो संगीत निक़ल ही आयेगा
रहूँ खड़ा मैं सोचता सभी अनिश्चित
कैसे हूँगा निश्चित चलना किस राह
जहाँ बढ़ चलूँ वहीँ सुलभ है मेरी राह
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