दिन तो ढलेगा इसका क्या
चाँद की रौशनी ही काफी है
अमावस की रात है तो क्या
जुगनुओं की तो आपाधापी है
रात अगर अँधेरी है तो क्या
सितारों की चमक बाकी है
सफ़र अकेला सही तो क्या
हमसफ़र की तलाश बाकी है
हमसफ़र न हो तो न ही सही
हमारा सफ़र अब भी बाकी है
कोई भी साथी न हो तो क्या
हमारे लिए अपना साथ काफ़ी है
वक़्त या शरीर दगा दे तो क्या
हौसलों का असर तो बाकी है
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