जब भी मैं ज़बाब ढूँढता हूँ
बस प्रश्नों में उलझ जाता हूँ
हर बार पूछना चाहता हूँ
मग़र खामोश रह जाता हूँ
और भी अनजान लगता हूँ
जितना नज़दीक़ आता हूँ
जितना मैं दूर जाता हूँ
उतना ही करीब पाता हूँ
कुछ प्रश्नों के ज़बाब नहीं होते
यही मानकर चुप हो जाता हूँ
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