Thursday, November 22, 2012

लम्हा लम्हा

लम्हा लम्हा चलते चलते
कभी रोते और कभी हँसते
हम इतनी दूर आ पहुँचे
अनजाने में दिल दुखाते
तो जानबूझ कर सहलाते
खट्टे मीठे अनुभव लिए
हम इतनी दूर आ पहुँचे
शिकवे कभी शिक़ायतें
झगडे भी और झिड़कियाँ
फिर भी प्रेम भाव लिए
हम इतनी दूर आ पहुँचे
अब ढलती उम्र में दोनों
अब यही है बस ख्वाहिश
बस गिले शिकवे करते
पर बढ़ते प्रेम भाव से हम
जितनी भी दूर हो संभव
हम उतनी दूर जा पहुँचें

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