समझ नहीं पाया हूँ मैं
ये तुम्हारा दृष्टि-दोष है
या अनधिकार चेष्टा है
मुझे आहत कर देने की
अपने इन दृष्टि-वाणों से
अकस्मात् पर सप्रयास
मैं चकित नहीं भ्रमित हूँ
किंकर्तव्यविमूढ़ भी हूँ
मेरी समझ से जाऊं क्या
या सोच का करूँ भरोसा
ये भी नहीं कह सकता हूँ
तुम्हीं बता तो हकीकत
फिर भी न मालूम क्यों
बिलकुल आश्वस्त भी हूँ
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