Friday, March 1, 2013

सरगोशी

ये तबस्सुम ये हवाएं और महकता मौसम
हरेक गोशे से छनकती मोहब्बत की सरगम
दिल का आया है कोई शायद एक नया पैगाम
अब बहारें भी मेरे साथ चलेंगी बस हाथ थाम

कोई सरगोशी से कह रहा है मेरे मन की बात
धीमे से जगाता मुझे कह के मेरे दिल की बात
अब तो इक़रार को हूँ मैं भी यहाँ बहुत बेक़रार
है तो हकीक़त ही बस अब ये मुझे कोई न बहम

शबनमी बूँदें यहाँ सुनाती हैं मोहब्बत के तराने
हरेक लफ्ज़ कुछ ऐसा जो छू जाता है मेरे दिल को
हौले हौले सुनाते अब मुझे इश्क़ की कोई दास्तान
मानो सारे नगमे किसी ने कर दिए हों ये मेरे नाम

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