Monday, March 4, 2013

गुज़रा सो गुज़र गया


चाहतों के सिलसिले कभी हमारे घरौंदे में थे
बस एक तेज़ हवा के झोंके ने सब बदल दिया
घरौंदा बिखर गया मेरा साथी भी बिछुड़ गया
तो क्या हुआ ये संसार मेरे अकेले का हो गया
मुझे करना होगा नए सिरे से यहाँ संघर्ष फिर
जो होना था नसीब में मेरे वो अब हो ही गया
दुनियाँ की रीत ही कुछ ऐसी है इधर शायद
कभी न कभी तो हर कोई अकेला ही रह गया
अब ज़ज्बात को रखना होगा क़ाबू में हमें भी
ज़िन्दगी और अभी जो गुज़रा सो गुज़र गया

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