Friday, March 22, 2013

गुस्ताखियाँ गश्त पर

होली का त्यौहार फिर से आ गया है
गुस्ताखियाँ यहाँ फिर से गश्त पर हैं
हँसी की ख़ुशी का अब होगा एहसास
लेकिन ये शोखियाँ अब बहाव पर हैं
रंज़िशें भुलाने का उत्सव आ गया है
दुश्मनियाँ भुलाने के अब आसार हैं
रंगों भरा आलम अब फिर एक बार
रंगों के अम्बार जो अब लग गए हैं
अब उदासी भूलो वसंत की ऋतू है
फाग की लय में सभी अब मस्त हैं
बह चली अब मन मस्त ये बयार है
जुदाइयों में भी मिलन का त्यौहार है

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