Sunday, March 3, 2013

तुम्हारा क्या

बादल तुम अपना रुख कहीं और कर लो
वसंत की धूप को खिल कर तो आने दो
मुझे फिर से जीवन के रंग दिखाई देते हैं
ज़रा तुम ठीक से नज़ारा तो कर लेने दो
ये बयार जो बह रही है खुशबुओं के साथ
इसे नर्म धूप सहित भी तुम आ जाने दो
जब आयेगी रुत गर्मियों को फिर से इधर
तब आ जाना अभी तो ये लुत्फ़ उठाने दो
तुम्हारा क्या मौसम के साथ बदलते रंग
किसी और को भी अपने रंग में छाने दो
तुम भी लोगों की तरह हो बिलकुल यहाँ
मज़ाल कि कभी खुल कर ख़ुशी आने दो

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