सुना था बहती थीं दूध की नदियाँ भी कभी
हमने तो लोगों को पानी को तरसते देखा है
ज़िन्दगी की खूबसूरती के कसीदे पढ़ के भी
छोटी सी ज़िन्दगी को सौ बार मरते देखा है
फ़क़ीरी की वक़ालत कर पर अमीरी को भी
हमने हर ख़ास-ओ-आम को तरसते देखा है
कफ़न में कोई ज़ेब नहीं एहसास होकर भी
कम को मुफलिसी में गुज़ारा करते देखा है
फ़िर भी कई लोगों को ख़ुद ही सब सहते भी
औरों की ख़ातिर कुर्बान होते हुए भी देखा है
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