बहुत अरमान सजाये थे
हमने तुम्हारे साथ को
सिंहावलोकन से सीखा
प्रयास या सोच सभी की
अपनी अपनी जगह है
अरमान पूरे होते कहाँ हैं
प्रायः आधे अधूरे रह जाते
किन्तु इतना भी बहुत है
मेरे व मेरे अरमानों के लिए
मैं गले तो न लगा पाई
लेकिन बसा के रखा है
इस स्थायी रूप से मैंने
तुम्हें मन में ही अपने
जब भी मन करता है
बात हो जाती है तुमसे
मेरे अभिन्न मित्र से!
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