फिर भी जीने का एहसास ख़ूब रहा
हर कोई मुसीबतों से डरा हम नहीं
ज़िंदादिली का ये एहसास ख़ूब रहा
रात के अँधेरे भी हमसफ़र ही तो हैं
अंधेरों का सहारा भी क्या खूब रहा
किसी रोज़ सोचा था करेंगे शिकवे
शिकायतों से किनारा भी खूब रहा
बनते-बनते बिगड़ जाती अक़्सर
किसी बात का इशारा भी ख़ूब रहा
तूफां हमारी क़श्तियाँ क्या डुबोते
क़श्तियों का तूफां को सहारा रहा
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