Sunday, May 25, 2014

तूफां को सहारा

थक चुकी है ज़िन्दगी भी जीते जीते
फिर भी जीने का एहसास ख़ूब रहा

हर कोई मुसीबतों से डरा हम नहीं
ज़िंदादिली का ये एहसास ख़ूब रहा

रात के अँधेरे भी हमसफ़र ही तो हैं
अंधेरों का सहारा भी क्या खूब रहा

किसी रोज़ सोचा था करेंगे शिकवे
शिकायतों से किनारा भी खूब रहा

बनते-बनते बिगड़ जाती अक़्सर
किसी बात का इशारा भी ख़ूब रहा

तूफां हमारी क़श्तियाँ क्या डुबोते
क़श्तियों का तूफां को सहारा रहा

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