मोहिनी सूरत निहारते
लोग कितने मूर्ख बन गए
तुम्हारे शब्दजाल के
इस नए प्रपंच में
सम्मोहित हो गए हैं
कितने अट्टहास और
तालियों की गड़गड़ाहट से
ज़ाहिर करते हैं ख़ुशी
तुम्हारे इस हर नए तंज में
विवेकहीन न भी सही
किन्तु सम्मोहित है सभी
तुम्हारे इस रूप से
बढ़ गई हैं उनकी सब
अप्रत्याशित आकांक्षाएँ
अब मोहभंग होगा
अथवा अप्रत्याशित होगा
छुपा है समय के अँक में
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