आज गुमसुम से खयाल हैं
अन्यमनस्क सा हर कोई
शायद समय के सवाल हैं
सूरज ने किया बंद उधार
चाँद की रौशनी भी कम है
बारिश शायद कहीं खो गई
हर ओर सूखे का मौसम है
सभी पानी को मोहताज़ हैं
हर आँख फिर भी नम है
कोई अज़ीज़ दूर जा रहा है
रोकने वाले उसे अब कम हैं
सब अपनी ही धुन में खोए
खुद को पर समझते कम हैं
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