मालूम है उनको भी
मन के साफ़ नहीं हैं
सफ़ेद पोशाक में भी
मुस्कुराते रहते हैं
वो ख़फ़ा होकर भी
बड़े नाटकबाज हैं
हम सब समझते हैं
ये जान कर भी
बड़े प्यार से मिलते हैं
अंदर ज़हर होकर भी
क़ायदों की कसमें खाते हैं
उनको न मानकर भी
ख़ुद के क़सीदे पढ़ते हैं
सरफिरे होकर भी
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