जाल से फैलाते
सियासी लोग और दल
स्वप्नवत दीखते
लोक लुभावन नारों
और आकांक्षाओं के
पीछे भागने को
प्रतिपल तैयार
जनता के हुजूम
बदहवास सी जनता
बेहाल परेशान
अनवरत फंसती जाते
सियासी प्रपंचों के
उनकी एकरूपता के
ज़हर बुझे वादे
वीभत्स अंतर दिखाते
करनी और कथनी का
लोकतंत्र के विकारों से
लाभ उठाते
स्वार्थ सिद्धि के
समागम बनते जाते
सभी विकल्पों का
अनवरत!
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