Thursday, January 29, 2015

अनवरत

विकल्प दर विकल्प
जाल से फैलाते
सियासी लोग और दल
स्वप्नवत दीखते
लोक लुभावन नारों
और आकांक्षाओं के
पीछे भागने को
प्रतिपल तैयार
जनता के हुजूम
बदहवास सी जनता
बेहाल परेशान
अनवरत फंसती जाते
सियासी प्रपंचों के
उनकी एकरूपता के
ज़हर बुझे वादे
वीभत्स अंतर दिखाते
करनी और कथनी का
लोकतंत्र के विकारों से
लाभ उठाते
स्वार्थ सिद्धि के
समागम बनते जाते
सभी विकल्पों का
अनवरत!

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