रियाया बेबस है
हुक्मरान खुश हैं!
और नौकरशाह
माध्यम बनते हैं
भ्रष्ट तंत्र और
इसके प्रपंचों के
प्रेरक व समर्थक हैं
नरभक्षियों के
आशा में
चन्द हड्डियों की!
बदनीयती के खंडहर
आज भी रोशन हैं
ज़ुल्मों से यहाँ
इन नरपिशाचों के
अब क्या मालूम
क्या कर पायेगा
कोई फ़रिश्ता भी
इस सब को मिटाने को!
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