Monday, February 2, 2015

कमनसीब

हम भी मुंतज़िर हैं बड़ी कामयाबी के यहाँ
नसीब के आगे मगर कब ज़ोर चलता है
जो भी झूठ कह दीजिये सब झलकता है
आईना हर दौर हर वक़्त आपका चेहरा है
किसको नसीब का धनी कह देते हैं आप
मायूसियों के दौर से हर शख़्स गुजरा है
सोचा था खेलोगे खेल को खेल की तरह
आपकी नज़र में शायद हरेक ही मोहरा है
हम कमनसीब सही फिर भी खुश हैं बड़े
जो भी कहते हैं वैसा ही हमारा चेहरा है
हम दिन गिन-गिन के नहीं करते गुजर
हमारी ख़ुशियों में लगा वक़्त का पहरा है


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