Tuesday, February 24, 2015

नए मौसम में!

अब के अमराई में
लदालद भरीं बौरें
मैंने भी देखी थीं
सोचा था मिलेंगे
यहाँ आम बेशुमार
लेकिन फल नदारद
जाने क्या हुआ
दाने बनते बनते
सब सूखने लगे
मेरे हिस्से क्या
कुछ न आ पाया
बंदरों के भाग में
पंछियों के हिस्से
आम अब नाम रहा
उम्मीद क़ायम है
दिखेंगे आम फिर
नए मौसम में!

No comments: