बिंदास अंदाज़ में
कहे थे अल्फाज़ उसने
अधखुले होंठों से
मैं एकदम अवाक् था
अप्रत्याशित से
इस रंग से उसके
शब्द बन नहीं पाये
खुले के खुले मुँह से
बाँहों में भर लिया उसने
आमंत्रण समझ कर
मेरी उस चुप्पी को
सारी ताक़त जुटाकर
धकेला जो मैंने उसको
नपुंसक का ताना देकर
पैर पटकती चल दी वो
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