Sunday, July 10, 2016

अप्रत्याशित

शरारती नज़र डाल
बिंदास अंदाज़ में
कहे थे अल्फाज़ उसने
अधखुले होंठों से
मैं एकदम अवाक् था
अप्रत्याशित से
इस रंग से उसके
शब्द बन नहीं पाये
खुले के खुले मुँह से
बाँहों में भर लिया उसने
आमंत्रण समझ कर
मेरी उस चुप्पी को
सारी ताक़त जुटाकर
धकेला जो मैंने उसको
नपुंसक का ताना देकर
पैर पटकती चल दी वो

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