Sunday, July 24, 2016

अपनापन

क़दमों के निशान हम बनाते रहे
न जाने किस बात का भरोसा था
यूँ लगा लोग हमारे पीछे चलते हैं
पीछे मुड़ के देखा तो कोई न था
नसीहत दें हमारी फितरत नहीं
हमें ख़ुद के क़दमों का इल्म था
हम आज भी अपनी जगह पर हैं
हमें हर किसी पर भरोसा जो था
ये दस्तूर नहीं सब रास्ते वही हों
नया रास्ता तुम्हारा भी हक़ था
हमारे साथ सब का अपनापन हो
सिर्फ इस बात का एहसास था

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