हर कोई आलोचक है
कर्म प्रधान नहीं है
मानो सब गलत हैं
हर काम में नुख्स हैं
धैर्य से कोई नाता
किसी को मंज़ूर नहीं
आलोचना की हदें हैं
खुद न करो न सही
कुछ उनको करने दें
जो काम कर रहे हैं
आज़ादी अज़ीज़ है
तो बचानी भी होगी
तरक़्क़ी पसंद है
तो आज़मानी होगी
दूसरों की मात्र नहीं
अपनी भी भागीदारी !
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