Friday, October 1, 2010

ज़ज्बाती

आओ आज हम भी कुछ ज़ज्बाती हो जाएँ
दुनियां की छोड़ अपनी ख़ुशी के गीत गायें
वक़्त की हिफाज़त में अपनी ही कुव्वत से
दो पल को ही सही तन मन को महकाएं
कर लें वो सारी गुफ्तगू जो भी दिल में हैं
हमें छोड़ कुछ पल को सब कुछ भूल जाएँ
साँसों के जज्बे से आती आवाजों को पहचान
हम भी अपने छुपे से मुक़द्दर को आजमायें
सब कुछ भुलाकर हम भी औरों की तरह
अपने ही अलग ढंग से करामाती हो जाएँ

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