कल की यादें जैसे आज भी ताज़ा सी थीं
गाँव की कर्मठ बच्चियां और स्त्रियों की
हर भेदभाव और शोषण के चलते भी
एक जीवंत अंदाज़ में कर्तव्यपरायणता
अभाव के बीच सपने और किलकारियां
कुछ करने की ललक और उनके सपने
शहर में रहकर भी वे हर द्वन्द से जूझतीं
शिक्षा, कामकाज भी के हर क्षेत्र में बढ़तीं
कामकाजी स्त्रियों का समन्वय का प्रण
परिवार, व्यवसाय के बीच व्यस्त क्षण
कभी हार न मान भी चुपचाप रहकर
नियति मान हर हाल में खुश दिखकर
अगली पीढ़ी को भी सदा प्रेरित करतीं
उनकी गगनचुम्बी उड़ान के मंतव्य को
प्रतिक्षण निश्वार्थ वे सबका साथ निभायें
धन्य धन्य हैं वे सब कुमाऊँ की महिलाएं
....actually relevant for most Indian and South Asian Women:)
1 comment:
it so so true and beautiful!remembering Shivani the unparalleled kumaoni writer.
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