Saturday, October 2, 2010

एहसान

रहनुमाई में खुदा की तो यहाँ
हम सभी इस ज़हां में जी लेते हैं
तुम्हारी रुसवाई में तो फ़क़त
एक हम ही गुज़ारा कर पाते हैं
बिसराई हुई मोहब्बत वो तुम्हारी
जीने का सहारा हमें दे देती है
किसी बीते हुए लम्हों की तरह
अक्सर ज़ेहन में चली आती है
ये भी एक एहसान था तुम्हारा
याद तो हमारी हमदम बनती है
आज भी हमारी मोहब्बत इधर
रोज़ तुम्हारे इर्द गिर्द घूमती है

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