हर कोई ढूंढता है यहाँ किसी का सहारा
बनते कम ही हैं लोग औरों का सहारा
कुछ लोग प्रयास तक भी नहीं करते
अपने से इतर एक सोच रखने की भी
उनकी मानसिकता में बसते हैं शब्द
'मैं भला किसी का कैसे बनूँ सहारा
मुझे खुद सहारे की है यहाँ तलाश'
उनकी स्वार्थी व हेय सोच देख भी
लोग 'नेकी कर दरिया में डाल' देते हैं
उनकी दृष्टी में निस्वार्थ होना ग्राह्य है
स्वार्थी चाहे उन्हें बेवकूफ ही समझें
वो अपना दृष्टिकोण बनाये रखते हैं
दुनियां उन्हीं के दम पर चलती है
वे ही बनते हैं ज़रूरतमंद का सहारा
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