तुम मुझे मेरी तस्वीर से मत आंकना
मैंने भी संजोया है एक सुन्दर सपना
अगर हो सके तुमसे तो फिर ज़रा
कोशिश करके मेरे अन्दर झांकना
मन के मिलन की कुछ बात अलग है
ये तुम अपने मन को भी समझाना
दूरियां तो रहेंगी ये है एहसास मुझको
करीब आने की कोशिश ज़रा करना
राही हैं सफ़र के हम दोनों भी यहाँ
हमसफ़र ही हमें भी समझ लेना
2 comments:
सही कहा आपने.. इस दुनिया में हम सभी तो हमसफ़र है... कब और कहा सफ़र सुरु होता है और कब ख़तम कुछ पता नहीं.......किन्तु आपकी कविता बहुत सुन्दर है..उम्दा
सर ! मैं तो आपकी लेखनी और काव्य प्रतिभा एवं प्रवत्ति का हमेशा से कायल रहा हूँ ! आपकी नई कविताओं में विरह, व्यंग्य, चेतना,आक्रोश एवं सकारात्मक सोच की लौ देखकर दंग हूँ ! बहुत - बहुत बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं
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