बड़े ही अजीबो गरीब होते हैं लोग
कहते कुछ हैं करते और ही हैं लोग
हम सब भी शामिल हैं इस भीड़ में
हमारे बाद ही नज़र आते हैं लोग
किसी के संकट में नज़र भर फेर
अपनी अपनी राह चल देते लोग
सभी की खुशियों में तो शरीक होते
पर ईर्ष्या सी भी रखते हैं कई लोग
परिवार, देश, समाज के उत्तरदायित्व
अक्सर ही नज़रंदाज़ करते हैं लोग
जीवन भर दौड़ भाग कर भी अंततः
उसी अनंत में समा जाते सब लोग
2 comments:
rightly said sir... as already acknowledged by kaifi azmi saab, यह जो ज़िन्दगी की किताब है , यह किताब भी क्या किताब है ,
कहीं एक हसीं सा ख़वाब है , कहीं जान लेवा अज़ाब है II
zindagi seedhi - saadi kab hui !
bheed mai samvedna kab hui !
jalan, daah ,ershya, zindagi ke
masale hai, kaise bach sakte hai aap, hum ye, wo...
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