अपने ही लिखे हुए गीतों का हम
ताउम्र रियाज़ भर करते रह गए
एक नायाब सी धुन की चाहत में
हरएक धुन ही सुधारते रह गए
कल सुनाने की कोशिश में यहाँ
रोज़ कल कल ही करते रह गए
कोई और सिर्फ तीन लफ़्ज़ों में
अपनी बात आसानी से कह गए
हम जिस घड़ी के इंतज़ार में थे
हर पल हमसे चुरा के ले गए
हमनशीं किसीके हमसफ़र हो गए
हम तनहाइयों में गुज़र करते गए
2 comments:
जी सर तीन लफ़्ज़ कहना भी मुश्किल होता है कभी ... सुंदर भाव
तीन लफ़्ज....जिंदगी बदल जाती है ..
जब कोई कहे या सुने ...
इन्तजार की घडी ठहर जाती है ..
वक़्त थम जाता है ..
पर कई दफा जिन्दगी गुजर जाती है ..
और लफ्जो को जबान नही मिल पाती
और जिंदगी ही बदल जाती है ....
बहुत खूब उदया सर ....सुंदर अभिव्यक्ति ...सादर ...
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