आज फिर भीगे भीगे मौसम में
भीगे भीगे जाते हैं मेरे अरमान
बारिश की बूंदों की टिप टिप से
टपकने लगते हैं मेरी आँखों से
कितनी शिद्दत से संभाले हुए थे
ये अरमानों के सब मोती हमने
एक बरसात बहा ले चली इनको
अब कौन रुख करेगा इनकी ओर
गर्मियों के सूखे मौसम में यहाँ
फिर बहारें कब आएँगी क्या मालूम
आबाद होंगे अरमानों के गुलशन
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