Monday, March 28, 2011

ज़मीर

एकदम अनजानों की तरह
निक़ल गया सामने से मेरे
शायद एहसास हो गया हो
उसे अपनी किसी भूल का
नज़र तक मिला न पाया
सवाल कहाँ था बात का
मेरी नज़र में गुनहगार नहीं
गम रहा होगा उसे गुनाह का
वक़्त आगे निक़ल जाता है
आलम रहता है अफ़सोस का
औरों ने माफ़ करा हो सही
क्या करें अपने ज़मीर का
वो तब भी था अब भी है
कहा देर से सुना तूने उसका

1 comment:

Savita Pande said...

उसकी फिदरत
मेरी तकदीर