एकदम अनजानों की तरह
निक़ल गया सामने से मेरे
शायद एहसास हो गया हो
उसे अपनी किसी भूल का
नज़र तक मिला न पाया
सवाल कहाँ था बात का
मेरी नज़र में गुनहगार नहीं
गम रहा होगा उसे गुनाह का
वक़्त आगे निक़ल जाता है
आलम रहता है अफ़सोस का
औरों ने माफ़ करा हो सही
क्या करें अपने ज़मीर का
वो तब भी था अब भी है
कहा देर से सुना तूने उसका
1 comment:
उसकी फिदरत
मेरी तकदीर
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