Sunday, September 25, 2011
वही पुरानी
उस तेज़ बारिश में भी
जाना ज़रूरी ही था उसे
पानी जो भर लाना था
फिर कुछ छोटी मोटी
खरीददारी भी बाकी थी
शाम के भोजन का प्रबंध
बस सीधे चल पड़ी थी वह
बिना कोई छतरी लिए ही
तेज़ बारिश में भीगती भीगती
आ गई थी वह ठिठुरती सी
पकौड़े मिलने में देर से खिन्न
उसका पति कुढ़ सा रहा था
देशी शराब पीते पीते ही
सब के भोजन के बाद अब
कुछ बचा हुआ भोजन था
उसके हिस्से यही आया था
बुखार सर्दी से कांपते वह
सोने चली थी वह ज्यों ही
अब पति उसके तन से खेल
अपनी प्यास बुझा सो गया
बुखार बढ़ने लगा था अब
दवा पानी की फ़िक्र छोड़
सुबह सब काम कैसे करेगी
वह अब इसी चिंता में थी
काम सबको था पर किसी को
उसकी फ़िक्र कतई नहीं थी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment