Monday, September 5, 2011

तनहाइयाँ

कितना सुकून होगा मिलेंगी मुझसे
कभी मेरी भी अपनी ही तनहाइयाँ
मेरी ही बातें मेरी ही रातें होंगी सारी
क्या खूब होंगी वो मेरी तनहाइयाँ
अब मगर बस अलग लगने लगी हैं
न मालूम क्यों ये हमारी तनहाइयाँ
किस किस का जिक्र करने लगी हैं
सोचा था सिर्फ मेरी होंगी तनहाइयाँ
मुझे कई तरह से मुझसे कर रही दूर
चाहे जितनी भी पास हों तनहाइयाँ
कभी कहीं दूर से कभी नजदीक से
मुझे डराने लगती हैं उफ़ ये तनहाइयाँ
अब नहीं गंवारा हैं मुझे कहीं भी ये
बस बहुत देख लीं मैंने ये तनहाइयाँ

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