Monday, September 12, 2011

क्या कहते हो

बहती थीं नदियाँ दूध की ज़रूर शायद
मैंने माना क्यों कि ये भी तुम कहते हो
मैंने तो दूध में पानी की देखी हैं नदियाँ
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
सोने की चिड़िया था कभी ये मेरा देश
औरों के साथ तुम भी तो ये कहते हो
तुम्हें इसे चिड़िया बना उड़ाते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
रही होगी इज्ज़त महिलाओं की कभी
अपनी लिखी किताबों में तुम कहते हो
मैंने तो इसे रोज़ सरेआम लुटते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
मैं भी हूँ क़ायल सभ्यता का तुम्हारी
इतिहास में कुछ ख़ास ज़िक्र सा पढ़ा है
मैंने तो तुम्हारी असभ्यता ही देखी है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो

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