मुझे भी इल्म न था हवाओं के रुख का
ख़ुद झांकती रही थीं ये मेरे तन-मन में
जब से हुआ है हवाओं से तवारुख मेरा
ख़ुशबुओं ने आप समां बांधा है दिल में
कभी ये बहारों की बयार सी हैं चलती
गर्म हों तो भी एक ठंडक लाती मन में
सुबह से शाम तक, रात छा जाने तक
ये नहीं छोड़तीं साथ मेरा भरी दुपहरी में
कितनी भी कर लो कोशिश भरमाने की
इनके लिए तो फर्क नहीं तुममें मुझमें
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