Saturday, April 21, 2012

चकमक

सब कुछ होकर लगता है अब अव्यवस्थित से इस जीवन में कमी है कुछ प्रकाश की हर ओर बेतहाशा और दिशाहीन भागता हर कोई भटक रहा मरीचिका में बस अंधकार के चलते सब ओर अब वो चकमक पत्थर कहाँ है जो रगड़ते ही बस चमकने लगे अपनी छोटी सी कोशिश कर के चीरकर इस अंधियारे को बरजोर अँधेरे का अपना महत्व है यहाँ बशर्ते वो छाया हुआ न हो कहीं हमारे अपने अंतर्मन में हर ओर

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