सब कुछ होकर लगता है अब
अव्यवस्थित से इस जीवन में
कमी है कुछ प्रकाश की हर ओर
बेतहाशा और दिशाहीन भागता
हर कोई भटक रहा मरीचिका में
बस अंधकार के चलते सब ओर
अब वो चकमक पत्थर कहाँ है
जो रगड़ते ही बस चमकने लगे
अपनी छोटी सी कोशिश कर के
चीरकर इस अंधियारे को बरजोर
अँधेरे का अपना महत्व है यहाँ
बशर्ते वो छाया हुआ न हो कहीं
हमारे अपने अंतर्मन में हर ओर
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