सोच रहा हूँ
स्वयं को समझना
विश्व की समझ से
कहीं अधिक कठिन
नए-नए प्रश्नचिन्ह
उत्तर का अभाव सा
नए की तलाश में
नया नहीं मिला
कुछ भी, अब भी
जीवन प्रसंग भी
दृष्टान्त लगते हैं
सखा, मित्र, साथी
अनजान लगते हैं
देश-परिवेश सारे
एक से लगते हैं
लोगों के अहंकार
उनकी रीत, व्यवहार
शिष्ट-अशिष्ट आचार
पहचाने लगते हैं
फिर भी मुझ को
जीवन के सब रंग
अच्छे लगते हैं
अब यही क्रम मुझे
जीवन लगते हैं
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