Sunday, October 19, 2014

ऐसा ही रहूँगा

बहुत कुछ मिला
लेकिन फिर भी
वो नहीं मिला
जो चाहा मैंने
अभिलाषायें मेरी
असीम थीं
हरेक की तरह
कुछ आधी-अधूरी
और शेष अपूंर्ण
शायद रह गईं
मरीचिका बन
मुझे चाहिये था
थोड़ा सा प्यार
कुछ अपनापन
और कुछ सुक़ून
कोताही नहीं की
मेरी दृष्टि में
मैंने अपनी ओर से
शिक़ायत फिर भी
कोई नहीं मुझे
आशावान था
ऐसा ही रहूँगा


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