Tuesday, April 14, 2015

क्या फ़र्क़ पड़ता है!

अब चिंतन और विचार
समसामयिक नहीं रहे
किन्तु फिर भी
इन्हें रोकना असंभव है
इनकी महत्ता लेकिन
बस मस्तिष्क तक है
किसी को फुर्सत नहीं
कहते हैं लोग
क्या फ़र्क़ पड़ता है
आज फिर नया
एक विचार आकर
चुपचाप निकल गया
दस्तक दे रहा है
मन में अब भी
पड़ा रहे किसी कोने में
क्या फ़र्क़ पड़ता है !

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