यथार्थ से नष्ट हुईं
सारी आशायें मेरी
फिर भी यक़ीनन
ग़म नहीं है मुझे
प्रेरणा देता रहा था
मेरा विश्वास सदा
और मेरा अन्तर्मन
बनाये रहता था
भरोसा मेरा सदा
स्वयं पर भी
और ज़माने पर भी
आशाओं का क्या!
बदलती रहती हैं
देश, काल, समय से
आशा-प्रत्याशा का क्रम
जीवन का सम्बल है
नियति का मतभेद है
नीयत के साथ सदा
नियति यदि कुछ नहीं
तो नीयत भी कुछ नहीं
बस क्रिया-विशेषण मात्र
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