तो कल होगी
देश की चिंता
फ़िलहाल तो हैं
सभी के यहाँ
घड़ियाली आँसू
अभी तो बस
उसकी अपनी ही है
किसान की चिंता
फसल बर्बाद हुई
तो खायेगा क्या
बेचकर आएगा कुछ
तो ज़रूरी चीजें लाएगा
जीवन यापन को
न बचा अगर
बीज तक को भी
मदद की जगह
नारे लगाने वाले मिले
तो और क्या करेगा
उधर तो चुका नहीं सकता
गुजारा कर नहीं सकता
निराशा के बीच बैठा
आत्महत्या कर बैठेगा
और कर भी क्या सकता है
इससे अधिक
मौसम का मारा !
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