Friday, July 6, 2012

गंतव्य

रास्ते का पता पूछते पूछते मुझे जब लगा कि मिल गया रास्ता कुछ ही दूर चलने के बाद फिर वो दाएँ-बाएं कई बार मुड़कर दोरास्तों और चौराहों से गुज़रा हर बार हिचकिचाहट के बाद मैं भी मुड़ता गया साथ-साथ अपना निर्णय व किस्मत लिए अब गंतव्य का तो पता नहीं परन्तु यात्रा जारी है निरंतर हर बार फिर से यहाँ नए नए मोड़ों से गुज़रती जुड़ती ज़िन्दगी विगत और भविष्य के साथ एक अनवरत अंतहीन रास्ते में चलेगी थम जाने तक निरंतर

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