Monday, July 16, 2012

अपनी नज़र

बियाबान में बागवान तलाशता पतझड़ का कोई आशियाना हूँ मैं नए वक़्त की पुरानी तस्वीर सा गुमशुदा कोई मुसाफ़िर सा हूँ मैं ज़माने के लिए कोई अधलिखी सी एक तल्ख़ सी एक दास्तान हूँ मैं मानो प्यासी रही नदी का कोई बुझ गया सा कोई अरमान हूँ मैं इत्तेहाद की ही गुहार सा लगाता एहतराम का एक मोहाजिर हूँ मैं अकेला ही सही फिर भी इधर अपनी नज़र का तो नूर हूँ मैं

1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत खूबसूरत.....
वाह...

लाजवाब पक्तियां..

अनु