बियाबान में बागवान तलाशता
पतझड़ का कोई आशियाना हूँ मैं
नए वक़्त की पुरानी तस्वीर सा
गुमशुदा कोई मुसाफ़िर सा हूँ मैं
ज़माने के लिए कोई अधलिखी सी
एक तल्ख़ सी एक दास्तान हूँ मैं
मानो प्यासी रही नदी का कोई
बुझ गया सा कोई अरमान हूँ मैं
इत्तेहाद की ही गुहार सा लगाता
एहतराम का एक मोहाजिर हूँ मैं
अकेला ही सही फिर भी इधर
अपनी नज़र का तो नूर हूँ मैं
1 comment:
बहुत खूबसूरत.....
वाह...
लाजवाब पक्तियां..
अनु
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