कितनी वीरानी सी है
कोई आस पास क्या
सुगबुगाहट भी नहीं
जीव जंतु सहित आज
पवन भी विश्राम में है
फिर भी कभी कभी
जाने क्यों लगता है
बुलाता हो कोई मानो
नेपथ्य से आती हुई
धूमिल से छवि का
बिछुड़ा साथी कोई
अपनी उस धीमी सी
संगीतमय ध्वनि से
मुझे जाना होगा कहीं
कोलाहल की तलाश में
क्या मालूम असर हो
उसका भी कोई आज
वर्ना वो तो संग ही है
मेरे भावों और मन में
No comments:
Post a Comment