कभी तुम पर हँसी आती
कभी क्रोध सा आता है
तुम्हारी क्षुद्र बुद्धि पर फिर
शायद तरस आ जाता है
अब तुम्हें नहीं समझाते
हम भी पले थे नाजों से
तुम्हें अपना सब है याद
यहाँ तक कि कोई भ्रम भी
हमारे बारे में लेकिन तुम
वह सब सोचते भी नहीं
क्या लगता है तुमको
सिर्फ तुम्हें अधिकार है
सब विष्लेषण करने का
अपनी समझ रखने का
अब हम बराबरी चाहेंगे
और भागीदारी निभायेंगे
वरना फिर अब समय है
तुमसे किनारा करने का
अवांछित सही यथार्थ का
गेंद अब तुम्हारे पाले में है
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