Sunday, July 28, 2013

ज़िन्दगी को पहचानिए


ज़िन्दगी को जियो ज़िन्दगी की तरह
क्या हक़ीक़त यहाँ उसको पहचानिए
हर लम्हा हर घड़ी ज़िन्दगी है इधर
चार दिन की समझ न भरम कीजिये
अपने अपने हिस्से की किस्मत तो है
साझा किस्मत पे थोड़ा अमल कीजिये
बाँट के कुछ ख़ुशी औरों के साथ भी
उनके हिस्से के थोड़े से गम पीजिये
हर तरफ़ है तो बिखरी मोहब्बत यहाँ
अपने हिस्से में क्या उसको पहचानिए
हुस्न की चाशनी में जब परोसा न हो
इश्क़ ज़ज्बात इसका इलम कीजिये
फ़ूल मिलते ही काँटों की हैं गोद में
दोस्ती काँटों से ज़रा कर के देखिये
बोझ सी जब सताने लगे ज़िन्दगी
ख़ुद भी अपने पे रहमो करम कीजिये

2 comments:

अनुपमा पाठक said...

'फ़ूल मिलते ही काँटों की हैं गोद में'
इसी सत्य को तो पहचानना है, एक बार हो गयी पहचान फिर तो सभी फूल अपने हो जाने हैं!

Udaya said...

:):)