जो मिले नसीब समझ ले लो
यही तो हर सरकार समझती है
नेताओं को ही राज करने दो
इसमें जनता कहाँ खपती है
राजतन्त्र, अर्थतंत्र की समझ
कहाँ कब हरएक को होती है
कौन कहता है जनता रोती है
रोने की फुर्सत कहाँ होती है
महंगाई कहाँ बढ़ी कहते हो
यहाँ तो उम्र भी बड़ी सस्ती है
दिल से देखो आँखों का क्या
हर ओर तरक्की ही तरक्की है
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