Monday, August 29, 2011

आवाज़ें

आवाज़ें
कभी पास तो कभी बहुत दूर से आती हुई
कभी दीवारों से टकरा के आती है आवाज़ें
बन्द दरवाज़ों के पीछे से भी आती है आवाज़ें
अब किस किस को कहें कि कम करें आवाज़ें
कभी धीमी कभी माध्यम तो कभी तेज़ हैं
जाने किस किस लय से आती हैं आवाज़ें
अनचाहे अनसुने भी अक्सर इनका है क्रम
कभी भी आहट सी करती हुई हैं ये आवाज़ें
ख़ामोशी का बस चीरती हुई सी है ये सीना
कितनी कर्कश होती हैं कभी कभी ये आवाज़ें
मुझको बुलाती सी हैं जाने किस मक़सद से
बिलकुल अनजानी अनकही सी ये आवाज़ें

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