आवाज़ें
कभी पास तो कभी बहुत दूर से आती हुई
कभी दीवारों से टकरा के आती है आवाज़ें
बन्द दरवाज़ों के पीछे से भी आती है आवाज़ें
अब किस किस को कहें कि कम करें आवाज़ें
कभी धीमी कभी माध्यम तो कभी तेज़ हैं
जाने किस किस लय से आती हैं आवाज़ें
अनचाहे अनसुने भी अक्सर इनका है क्रम
कभी भी आहट सी करती हुई हैं ये आवाज़ें
ख़ामोशी का बस चीरती हुई सी है ये सीना
कितनी कर्कश होती हैं कभी कभी ये आवाज़ें
मुझको बुलाती सी हैं जाने किस मक़सद से
बिलकुल अनजानी अनकही सी ये आवाज़ें
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